वांछित मन्त्र चुनें

शु॒ष्मिन्त॑मं न ऊ॒तये॑ द्यु॒म्निनं॑ पाहि॒ जागृ॑विम्। इन्द्र॒ सोमं॑ शतक्रतो॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

śuṣmintamaṁ na ūtaye dyumninam pāhi jāgṛvim | indra somaṁ śatakrato ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

शु॒ष्मिन्ऽत॑मम्। न। ऊ॒तये॑। द्यु॒म्निन॑म्। पा॒हि॒। जागृ॑विम्। इन्द्र॑। सोम॑म्। श॒त॒क्र॒तो॒ इति॑ शतऽक्रतो॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:37» मन्त्र:8 | अष्टक:3» अध्याय:2» वर्ग:22» मन्त्र:3 | मण्डल:3» अनुवाक:3» मन्त्र:8


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (शतक्रतो) बहुत बुद्धि वा बहुत कर्मयुक्त (इन्द्र) सबके रक्षक राजन् ! आप (नः) हम लोगों की (ऊतये) रक्षा आदि के लिये (शुष्मिन्तमम्) प्रशंसित वा बहुत प्रकार का बल जिसके उस अतीव (द्युम्निनम्) यशस्वी लक्ष्मीवान् और (जागृविम्) जागनेवाले जन और (सोमम्) ऐश्वर्य्य की (पाहि) रक्षा करो ॥८॥
भावार्थभाषाः - सब प्रजा और राजजनों को चाहिये कि सबके अधीश राजा और अन्य अध्यक्षों के प्रति ऐसा कहैं कि आप लोग हम लोगों के रक्षक पुरुषों की और ऐश्वर्य्य की रक्षा में निरालस और उद्यत होवैं ॥८॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

हे शतक्रतो इन्द्र ! त्वं न ऊतये शुष्मिन्तमं द्युम्निनं जागृविं सोमं च पाहि ॥८॥

पदार्थान्वयभाषाः - (शुष्मिन्तमम्) प्रशंसितं बहुविधं वा बलं विद्यते यस्य तमतिशयितम् (नः) अस्माकम् (ऊतये) रक्षणाद्याय (द्युम्निनम्) यशस्विनं श्रीमन्तम् (पाहि) (जागृविम्) जागरूकम् (इन्द्र) सर्वाभिरक्षक राजन् (सोमम्) ऐश्वर्य्यम् (शतक्रतो) बहुप्रज्ञ बहुकर्मन् वा ॥८॥
भावार्थभाषाः - सर्वैः प्रजाराजजनैः सर्वाधीशं राजानमन्यानध्यक्षान्प्रति चैवं वाच्यं भवन्तोऽस्माकं रक्षकाणामैश्वर्य्यस्य च रक्षायामनलसा उद्यता भवन्तु ॥८॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - सर्व प्रजा व राजजनांनी सर्वाधीश राजा व इतर अध्यक्षांना असे म्हणावे की तुम्ही आमच्या रक्षकांचे व ऐश्वर्याचे रक्षण करण्यास सदैव तत्पर असावे. ॥ ८ ॥